कुछ लोग तो हमेशा से ही
जिज्ञाशू और जानकार समझदार होते रहे हैं, आधुनिल काल में उनकी संख्या बढ़ती गई पर आज भी
अधिकांश लोग न जानकार होते हैं न समझदार, भारतवर्ष में तो शिक्षित लोगों के पास भी
अधिकांशतः औरों की अपेक्षा सूचनाएँ ही अधिक होती हैं। यह तो हम जानते ही होंगे कि
सूचना -ज्ञान –विवेक के क्रम में सूचना सबसे निचले स्तरकी बौद्धिक गतिबिधी है और केवल
सूचना के आधार पर श्र्ज्नात्मक और निर्णायक काम नहीं किया जा सकता । उसके लिए
जरूरी होता है विश्लेषण – संश्लेषण , अध्ययन-चिंतन मनन के आधार पर निर्मित ज्ञान जिसका
इस्तेमाल श्र्जन और विवेक के लिए हो तभी व्यक्ति और समाज आगे बढ़ते हैं।
जरा इतिहास में झाँककर
देखिये। यह सारा काम समाज में थोड़े से लोग करते रहे हैं। भारत में नारियां और दलित इससे बंचित
ही कर दिये गए थे। सवर्ण पुरुषों में भी
सभी को अबसर नहीं मिलपाता था। ऐसी व्यबस्था में भी दुनिया नें पिछले तीन हजार
वर्षों में, विशेष कर पिछले दो सौ वर्षों में,
जब से प्रगति में लोगों की भागीदारी बढ़ती गई है, अभूतपूर्व उन्नति की है,
कल्पना करने पर रोमांच हो आता है कि समाज के अधिकांश लोग
अध्ययन-चिंतन-मनन-प्रयोग-निर्माण में लग जाएँ तो क्या-क्या हो सकता है।
आइये
अपनें आप को गंभीरता से लें पुस्तिका से-
प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा